चौपाई :
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥
भावार्थ:-जाम्बवान् के सुंदर वचन हनुमानजी के हृदय को बहुत ही भाए। वे बोले- हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना जब तक मैं सीताजी को देखकर लौट न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमानजी हर्षित होकर चले
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥
भावार्थ:-समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमानजी अनायास ही कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके उस पर से बड़े वेग से उछले। जिस पर्वत पर हनुमानजी पैर रखकर चले, वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का बाण चलता है, उसी तरह हनुमानजी चले
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥
भावार्थ:-समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो।
दोहा :
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥
भावार्थ:-हनुमानजी ने उसे हाथ से छू दिया, फिर प्रणाम करके कहा- भाई! श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ?
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥
भावार्थ:-जाम्बवान् के सुंदर वचन हनुमानजी के हृदय को बहुत ही भाए। वे बोले- हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना जब तक मैं सीताजी को देखकर लौट न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमानजी हर्षित होकर चले
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥
भावार्थ:-समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमानजी अनायास ही कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके उस पर से बड़े वेग से उछले। जिस पर्वत पर हनुमानजी पैर रखकर चले, वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का बाण चलता है, उसी तरह हनुमानजी चले
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥
भावार्थ:-समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो।
दोहा :
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥
भावार्थ:-हनुमानजी ने उसे हाथ से छू दिया, फिर प्रणाम करके कहा- भाई! श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ?
I am glad that you write the meaning too or else it would have been very difficult to understand even though the words may look simple.
ReplyDeleteThanks once agan, Deepak. I love the shudh hindi words...it is refreshing to read it. And reconnect with the language. I am also currently reading Panchtantra!
ReplyDeleteSri Bhagwadh Gita is up next.
Thanks Deepak :)
ReplyDeletewaah..shukriya is sundar bhaavarath ke liye
ReplyDeleteWonderful work this time too Deepak..Thanks for sharing!!
ReplyDeleteदीपक, बहोत बहोत बढ़िया... जो पर्वत पाताल में धंस गया उस का नाम क्या था?
ReplyDeleteयह सब चौपाई कौनसे छंद/राग में गाते है?
Bhai Deepak ji Maharaj ki Jai ho!!!
ReplyDeleteThanks bro for taking out this time and sharing the details... I was looking forward to this!!!
deepak, or any one else who would like to please clarify...
ReplyDelete- i am curious...what would the significance be of the mountain going into patal...
patal is hell right....
- what is the meaning of the word अनायास
@Vinita: I am glad to be useful.
ReplyDelete@Jas: Thanks Jas. Well Its not entirely from me. I take some help from here and there.
@Swati: Thanks :)
@Alpana: Dhanyabaad
@Vaishali: Thanks :)
@Kannan: Dhanyabaad. उस पर्वत का नाम मैनाक पर्वत है। I really don’t have any idea about the raag/chhand in we which we sing Ramcharitmanas.
@Om: Bhai aisa kuchh nahin hai. I am just happy to share :)
@Joy:
1: अनायास - without effort, suddenly
2: Patal has lots of different meaning. According to my knowledge, there are 7 locas below Earth, and 6 are above earth. Patal is the last Locka (Lowest from earth). If something goes to Patal, it means it is at its lowest ,level and it cannot go any lower. So When Hanumaan Ji jumped from Mainaak Parvat towards Lanka, Mainaak Parvat couldn’t tollrate the force of his jump and it went to Patal means to the lowest level of universe. I hope it make sense
:)
many thanx deepak...your explanation is making my understanding of sunderkand...anaayaas ;p
ReplyDeleteDeepak, thanks! No worries about not knowing the raag/chhand.
ReplyDeleteI think it's the same mountain Mainaak that was utilized during the "samudra manthan". Quite a lot of significance this mountain has.
Was this mountain a part of the North Indian mountains or the South? Some pages of google say it was part of the Himalayas. May be they renamed it.
Yet another geographical mystery to be added to my list along with river Saraswati.
Thanks. :)
@Kannan: Mount Mandaranchal was used as the churning tool in Samudramanthan while this one is Mainaak Parvat.
ReplyDeleteHi Deeppak, just kidding.. ;) Deepak, thanks for the correction. I got mixed up. Need to make these my regular readings to remember the names correctly. :)
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