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16/01/11

ज्ञानचंद दोहेवाले

छुट्टी ऐसे काटिए, के अपने खुश हो जाएँ|
ना कोई अनजाना घर आये, और घर के न बहार जायें||
ना रोटी की चिंता, न नाश्ते की फिकर |
साथ हो बातें हो, बातों से पेट भर जाये ||

Prashant Bhardwaj, Jan-2011

4 comments:

  1. वाह-वाह.
    पढकर मज़ा आ गया :)

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  2. Its Beautiful! :) Have you written this?

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  3. @ Braj
    :)

    @ Biraj
    thanks! I wrote this yes!

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  4. waah!....kya khub kahi..bahut khub :)

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